लेखक महेंद्र गौतम | मराठी साहित्य | मराठी संस्कृती | मराठी वाङमय | गर्जा महाराष्ट्र माझा |

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"यशामुळे आपली ओळख लोकांना होते आणि अपयशामुळे लोकांची ओळख आपल्याला होते..!"

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4. मैत्री....! (तु का मी...?)

झालेली मैत्री
रोजच मेसेजींग
वाढत जाणारं काँल ड्युरेशन
शेवरीच्या कापसासारख तरंगणार कुणीतरी
डोळ्यांनी बोलणं
मोकळ मोकळ हसणं..
इमोशन शेअरींग...
मैत्री कोण निभावेल...
तु का मी...?
महेंद्र कांबळे.
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